Saturday, January 10, 2015

शिक्षा -------- देश के आवाम के सामने बड़ा प्रश्न 11-1-15

शिक्षा -------- देश के आवाम के सामने बड़ा प्रश्न



राष्ट्रीय पाठ्य चर्चा की रूप रेखा 2005 को बने करीब दस साल पूरा हो चूका है | नई सरकार नया  दस्तावेज बनाने की जुगत में है , लेकिन दुर्भाग्य है कि अभी तक यह दस्तावेज पूरी तरह से धरातल पर नही उतर पाया है | सरकारी स्कूलों में तो इस दस्तावेज द्वारा सुझाए गये बहुत सारे सुझाव को कार्यरूप में परिणित करते हुए शिक्षण के तरीको में कुछ परिवर्तन देखे भी गये है | एन सी आर टी सहित विभिन्न राज्यों ने इस दस्तावेज के आलोक में अपनी पाठ्य पुस्क्तो का पुनर्लेखन भी किया है | बहुत बेहतर पाठ्य पुस्तके तैयार की गयी है , लेकिन निजी क्षेत्र के अधिकाश विद्यालय ऐसे है , जहा इस दस्तावेज का नाम तक नही पहुचा है | एन सी ऍफ़ 2005 की बात करने पर बहुत सारे शिक्षक पूछ बैठते है कि यह क्या है  ?  इससे स्पष्ट होता है कि निजी क्षेत्र के विद्यालयो को शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे नये परिवर्तनों से कुछ लेना - देना नही है | यहाँ तक देखा गया है कि वे सरकारी पाठ्य पुस्तको तक को लागू नही करते | कही प्रबन्धन द्वारा मज़बूरी में भी लागू की गयी है तो शिक्षको द्वारा उनका बहुत कम इस्तेमाल किया जाता है | अधिकाश विद्यालयो में प्राइवेट प्रकाशनों द्वारा तैयार किताबे लगाई जाती है | ये किताबे न केवल महगी होती है , बल्कि इनको तैयार करते हुए शिक्षा के सिद्दांतो और बाल मनोविज्ञान का भी ध्यान नही रखा जाता है | ये किताबे बच्चे को ज्ञान निर्माण की दिशा में आगे बढाने की अपेक्षा ज्ञान प्रदान करने पर अधिक बल देती है | इस तरह शिक्षा का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज स्कूलों तक ही सीमित होकर रह गया है , जबकि आज निजी क्षेत्रो के विद्यालयो  का दिन - प्रतिदिन विस्तार होता जा रहा है | लगभग पचास प्रतिशत बच्चे निजी विद्यालयो में पढ़ते है | एक और विडम्बना है कि सरकारी स्कूलों तक इस दस्तावेज की समझ तो पहुच रही है , लेकिन वहा  भौतिक व मानवीय ससाधनो की स्थिति इतनी खराब है कि वे चाह कर भी इसको ठीक से लागू नही कर सकते | एन सी ऍफ़ 2005 शिक्षा का एक ऐसा दस्तावेज है जिसको अब तक का सबसे प्रगतिशील दस्तावेज माना जाता है | इस दस्तावेज को प्रख्यात वैज्ञानिक प्रो यशपाल के नेतृत्व में देशभर के शिक्षाविदो , साहित्यकारों , समाजशास्त्रियो , वैज्ञानिकों आदि ने लगभग दो वर्ष चली लम्बी प्रक्रिया के बाद तैयार किया | यह दस्तावेज वर्ष 1988 और 2000 के दस्तावेजो से इस रूप में भिन्न है कि इसे एन सी आर टी के आंतरिक समूह के द्वारा न तैयार कर एक राष्ट्रीय संचालन समिति द्वारा तैयार किया गया जिसमे लगभग 35- 36 लोग थे | इसके अलावा 21 फोकस समूह थे जिनमे प्रत्येक में 13 - 14 सदस्य लोग थे | इस तरह करीब 400 लोग प्रत्यक्ष और अनेको लोग अप्रत्यक्ष रूप में शामिल हुए | इसमें राष्ट्रीय सहमती की झलक मिलती है | यह दस्तावेज शिक्षा कैसी होनी चाहिए , क्यों होनी चाहिए , उसके सरोकार क्या है , और उसे कैसे बच्चो तक ले जाया जाना चाहिए इन तमाम प्रश्नों का विस्तार से उत्तर देता है | शिक्षा में बने अब तक के सारे दस्तावेजो और प्रयोगों का निचोड़ है यह दस्तावेज | इस दस्तावेज में सामाजिक न्याय , समानता , वैज्ञानिक नजरिये और बहुलतावादी समाज पर विशेष बल दिया गया है | यह नागरिक को एक सचेत , विवेकशील और स्वतंत्र प्राणी मानता है और उसे इस बात की स्वतंत्रता देता है कि राष्ट्र कैसा बनाये | एन सी ऍफ़ २००५ के पांच मार्गदर्शक सिद्दांत है -- ज्ञान को स्कुल के बाहरी जीवन से जोड़ना , पढ़ाई को रटन्त प्रणाली से अलग करना . पाठ्य चर्चा का इस तरह सम्वर्धन कि वह बच्चो को चहुमुखी विकास का असवर मुहैया करवाए बजाए इसके कि वह पाठ्य पुस्तक - केन्द्रित बन कर रह जाए , परीक्षा को अधिक लचीला बनाना और कक्षा को जीवन से जोड़ना | इन सभी सिद्दांतो की आज अधिकाश निजी स्कुलो में क्या स्थिति है यह किसी से छुपा नही है | वह इन सिद्दांतो की खुलेआम धज्जिया उड़ाई जा रही है | आज भी इन स्कुलो में ज्ञान स्कुल की चारह्दीवारी में कैद है | स्कुल के बाहरी जीवन से उसका कोई सम्बन्ध नही है | सूचनाओं तथ्यों और जानकारियों को रटना  , महेश चन्द्र पुनेठा राष्ट्रीय पाठ्य चर्चा की रूपरेखा 2005 को तैयार हुए लगभग एक दशक पूरा होने जा रहा है | नई सरकार नया दस्तावेज बनाने की जुगत में है लेकिन दुर्भाग्य है कि अभी तक यह दस्तावेज पूरी तरह से धरातल पर नही उतर पायी है | सरकारी स्कूलों में तो इस दस्तावेज द्वारा सुझाए गये बहुत सारे सुझावों को कार्यरूप में परिणित करते हुए शिक्षण के तरीको में कुछ परिवर्तन देखे भी गये है | शिक्षा  के नियमो को लेकर आम समाज के सामने यह एक बड़ा प्रश्न खड़ा हुआ है की आने वाले समय में हम अपने बच्चो को कैसी पद्दति से शिक्षा दे सकेगे ?


सुनील दत्ता ----

4 comments:

  1. आदरणीय शाश्त्रीजी , आप जैसे विद्वानों को तो बच्चों की शिक्षा की चिंता है परन्तु देश के राजनीतिज्ञ इस बात से चिंतित हैं कि लोग जितने अधिक शिक्षित होंगे उतने ही अधिक नेताओं के अंदर की कालिख समझने लग जायेंगे।

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  2. सार्थक प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (12-01-2015) को "कुछ पल अपने" (चर्चा-1856) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. मैं चौधरी धेतरवाल जी के टिपण्णी से सहमत हूँ !
    संत -नेता उवाच !
    क्या हो गया है हमें?

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  4. आदरणीय कालिपद जी आपका तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ साथ में चौधरी भाई को उन्होंने सत्य कहा है कि आज हमारी शिक्षा व्यवस्था में ही सुधार आ जाए तो हम बहुत कुछ परिवर्तित कर सकते है सधन्यवाद

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