डा राम मनोहर लोहिया के विचार
--- मैं नही जानता कि इश्वर है या नही है लेकिन इतना जानता हूँ कि सारे जीवन एवं सृष्टि को एक में बाधने वाली ममता की भावना है , हालाकि यही दुर्लभ है | ''
( हिन्दू बनाम हिन्दू लेख से )
- दुनिया में सबसे अधिक उदास है हिन्दुस्तानीलोग | वे उदास है कयोकि वे ही सबसे अधिक गरीब एवं बीमार है | परन्तु उतना ही बड़ा एक कारण और है कि वे बात तो निर्लिप्तता की करते है , पर व्यवहार से भद्दे से भद्दे ढंग से लिपट रहते है | ''
( जाति और योनि के दो कटघरे नामक लेख से )
भाषा के परिवर्तन का तो एक ही अर्थ होता है कि अपनी लोकभाषा या लोकभाषाओ को समृद्द बनाये | उसमे सब तरह के ज्ञान का प्रवेश करे |
( सामन्ती भाषा में लोकराज असम्भव नामक लेख से )
-- मैं वर्गो का अन्त देखने को उतना ही उत्सुक हूँ जितना की कोई भी हो सकता है लेकिन मुझे डर है कि वर्गो की समाप्ति की आड़ में सदा ही वर्णों का निर्माण होता रहा है | अब तक का समस्त मानवीय इतिहास वर्गो तथा वर्णों के बीच बदलाव , वर्गो की जकड़ से वर्ण बनाने और वर्णों के ढीले पड़ने से वर्ग बनने का ही इतिहास रहा है
प्रस्तुती - सुनील दत्ता ( इतिहास चक्र से )
--- मैं नही जानता कि इश्वर है या नही है लेकिन इतना जानता हूँ कि सारे जीवन एवं सृष्टि को एक में बाधने वाली ममता की भावना है , हालाकि यही दुर्लभ है | ''
( हिन्दू बनाम हिन्दू लेख से )
- दुनिया में सबसे अधिक उदास है हिन्दुस्तानीलोग | वे उदास है कयोकि वे ही सबसे अधिक गरीब एवं बीमार है | परन्तु उतना ही बड़ा एक कारण और है कि वे बात तो निर्लिप्तता की करते है , पर व्यवहार से भद्दे से भद्दे ढंग से लिपट रहते है | ''
( जाति और योनि के दो कटघरे नामक लेख से )
भाषा के परिवर्तन का तो एक ही अर्थ होता है कि अपनी लोकभाषा या लोकभाषाओ को समृद्द बनाये | उसमे सब तरह के ज्ञान का प्रवेश करे |
( सामन्ती भाषा में लोकराज असम्भव नामक लेख से )
-- मैं वर्गो का अन्त देखने को उतना ही उत्सुक हूँ जितना की कोई भी हो सकता है लेकिन मुझे डर है कि वर्गो की समाप्ति की आड़ में सदा ही वर्णों का निर्माण होता रहा है | अब तक का समस्त मानवीय इतिहास वर्गो तथा वर्णों के बीच बदलाव , वर्गो की जकड़ से वर्ण बनाने और वर्णों के ढीले पड़ने से वर्ग बनने का ही इतिहास रहा है
प्रस्तुती - सुनील दत्ता ( इतिहास चक्र से )
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