टीपू सुलतान
क्या कभी हिंदोस्ता की तवारीख से सम्राट अशोक या अकबर महान का नाम हटाया जा सकता है ? क्या कभी महाराष्ट्र के इतिहास से छत्रपति सिवाजी महाराज के नाम को गायब किया जा सकता है ? इनका जबाब सभी एक सुर से दे सकते है '' नही '' जाहिर है चंद नाम किसी सूबे , किसी देश के इतिहास से इस कदर जुड़ जाते है कि उन्हें अलग करना असम्भव होता है | शायद यही बात टीपू सुलतान के बारे में कही जा सकती है , जो ब्रिटिश पूर्व हिंदोस्ता का एक मात्र ऐसा शासक था जो अंग्रेजो के विरुद्द लड़ते - लड़ते मैदाने जंग में शहीद हुआ | यह विडम्बना ही है कि चंद दक्षिणपथी सगठनों को यह बात रास नही आती और वह उनके योगदान को सक्रीण नजरिये से देखते है | यहाँ तक कि उसे भी धर्म या सम्प्रदाय के चश्मे से देखने की कोशिश करते है | कर्नाटक सरकार द्वारा टीपू जयंती मनाने के प्रस्ताव को लेकर जिस तरह की प्रतिक्रियाये हिंदूवादी सगठनों की तरफ से सामने आई है उसके बारे में यही कहा जा सकता है | निश्चित ही यह पहली बार नही है कि इस तरह का विरोध किया गया | दो साल पहले कर्नाटक के श्रीरंगपट्टनम में जहा टीपू वीरगति को प्राप्त हुए थे , बन रहे एक विश्व विद्यालय को उनके नाम पर बनाने को लेकर भी तत्कालीन केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर भी विरोध किया गया था | इतना ही नही जिन दिनों कर्नाटक में जनता दल ( एस ) के साथ भा ज पा सत्ता में साझेदारी कर रही थी तब इन्ही सगठनों ने कर्नाटक के इतिहास से टीपू सुलतान का नाम हटाने का प्रस्ताव रखा था | यह अच्छी बात है कि हिंदोस्ता की जनता की स्मृतियों में टीपू सुलतान आज भी एक ऐसे शासक के तौर पर मौजूद है जो बेहद दूरदर्शी थे और जिन्होंने उपनिवेशवाद के खतरे को बहुत पहले भाप लिया था | 20 नवम्बर 1750 को देवनहल्ली में जन्मे और 4 मई 1799 को अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनममें अग्रेजी सेना के हाथो शहीद हुए टीपू सुलतान उन शासको में शुमार किये जाते थे जो अपने समय से बेहद आगे थे | वह पढ़े - लिखे होने के साथ - साथ काबिल सेनानी थे | वह एक अच्छे कवि तथा भाषाशास्त्री भी थे | मैसूर के पहले चर्च निर्माण उन्होंने ही करवाया था | उनकी सेना में अधिकतर लोग हिन्दू थे | चर्चित वृन्दावन गार्डेस का निर्माण उन्होंने ही करवाया , सडको , सार्वजनिक इमारतो और केरल के किनारे बन्दरगाहो का निर्माण उनके ही शासनकाल में हुआ | मैसूर के प्रथम और द्दितीय युद्द में अग्रेजी सेना को भारी नुक्सान उठाना पडा था और इसके चलते एक अजेय सेना होने का अंग्रेजो का मिथक टूट गया | टीपू सुलतान हिन्दू - मुस्लिम एकता के जबर्दस्त हिमायती थे | उन्हें नई --- नई खोजो में दिलचस्पी रहती थी | यह अकारण नही है कि पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अबुल कलाम ने अपने व्याख्यान में उन्हें ' विश्व में पहली बार राकेट विज्ञान विकसित करने सुभाष गताडे क्या कभी हिंदोस्ता की तवारीख से सम्राट अशोक या अकबर महान का हटाया जा सकता है ? क्या कभी महाराष्ट्र के इतिहास से छत्रपति सिवाजी महाराज के नाम को गायब किया जा सकता है ? इनका जबाब सभी एक सुर में दे सकते है '' नही '' | जाहिर है चंद नाम किसी सूबे किसी देश के इतिहास से इस कदर जुड़ जाते है कि उन्हें अलग करना असम्भव होता है | शायद यही बात टीपू सुलतान के बारे में कही जा सकती है , जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जब तक रहा जंग करता रहा |
साभार ----- काशीवार्ता (वाराणसी ) दस जनवरी २०१५
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