Thursday, January 29, 2015

नया भूमि अधिग्रहण विधयेक और उसके मसौदे में संशोधन 30-1-15

नया भूमि अधिग्रहण विधयेक और उसके मसौदे में संशोधन

 ( क्या किसानो के हित में , या किसानो के विरोध में )

इस अन्याय का प्रतिकार भूमि अधिग्रहण का मार सहने वाले किसानो और उससे ग्रामीणों को ही करना होगा | उन्हें भूमि अधिग्रहण और उसके मसौदा को , उसमे किये जाते रहे संशोधनों को स्वंय अपनी चर्चा का तथा विरोध का विषय बनाना होगा
नया भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा में पेश किया जा चुका है | इसका मसौदा 29 जुलाई को जारी किया गया था | 5 सितम्बर के समाचार पत्रों में इस मसौदे का वह संशोधित रूप प्रकाशित हुआ , जिसे संसद में पास करवा कर कानून का रूप दिया जाना है | यही कानून , भूमि अधिग्रहण के 1894 के कानून की जगह लेगा | संसद में बहस के बाद यह कानून के रूप में कैसे सामने आता है , यह बाद की बात है | पर दिलचस्प बात यह है कि 29 जुलाई को देशव्यापी राय मशविरे के लिए जारी मसौदे में कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण बदलाव कर दिये गये है | इस बदलाव के लिए सरकार को किसने सलाह दी ? क्या किसानो ने ?एकदम नही | किसानो या किसान संगठनों कि राय तो कही चर्चा तक में नही आई | लेकिन उद्योगपतियों के संगठनों और प्रचार माध्यमी जगत के दिग्गजों कि राय जरुर आती रही | इस संदर्भ में समाचार पत्रों में सूचनाये भी प्रकाशित होती रही | बेहतर है कि किसी भी नतीजे पर पहुचने से पहले मसौदे में दिये गये बदलाव को मोटे तौर पर देख लिया जाए 
1 . 29 जुलाई को जारी किये गये मसौदे में यह कहा गया था कि , खेती योग्य और सिंचित जमीन का अधिग्रहण नही किया जाएगा |लेकिन उद्योगपतियों के संगठनों और उनके समर्थको के खुले दबाव के बाद इसके अधिग्रहण को हरी झंडी दे दी गयी है | बड़े उद्योगपतियों के संगठन "पिक्की " द्वारा मसौदे पर सुझाव के रूप में यह बयान समाचार पत्र में प्रकाशित भी हुआ है | हाँ , इस सुझाव में सांत्वना के तौर पर ग्रामीण विकास मंत्री ने विधेयक में यह प्राविधान जोड़ दिया है कि ( लेकिन कितने दिन बाद , यह अनिश्चित है ) उस जिले में उतनी कृषि भूमि का सिंचित भूमि में विकास कर दिया जाएगा |
2--- जुलाई के मसौदे में ग्रामीण इलाको कि जमीन का मुआवजा बाज़ार दर से 6 गुना ज्यादा दिये जाने का प्रस्ताव किया गया था | अब अधिग्रहण के बाद मुआवजे कि रकम अदा करने वाली कम्पनियों , डेवलपरो के दबाव में उसे घटाकर 4 गुना कर दिया गया है | 
3--- तीसरा और अत्यंत महत्वपूर्ण बदलाव - मसौदे में यह प्रस्तावित था कि 5 साल तक अधिग्रहित भूमि का घोषित उद्देश्य के लिए न इस्तेमाल किये जा सकने कि स्थिति में वह जमीन किसानो एवं ग्रामवासियों को लौटा दी जायेगी | लेकिन अब नये संशोधन के अनुसार अब वह जमीन इस्तेमाल न किये जाने के वावजूद जमीन के मालिक किसानो को बिलकुल लौटाई नही जायेगी | अब वह भूमि राज्य भूमि प्राधिकरण के कब्जे में चली जायेगी | कुछ समाचार पत्रों में यह सुचना भी आई थी कि 5 वर्ष कि मियाद को संशोधित करके 10 वर्ष कर दिया जाना है | अर्थात 10 साल तक अधिग्रहित जमीन का इस्तेमाल न होने पर वह राज्य भूमि प्राधिकरण के कब्जे में चली जायेगी | 
इसके अलावा मसौदे के कई अन्य सुझावों में बदलाव किये गये है | जिन्हें हम कानून के रूप में आने के बाद प्रस्तुत करेंगे और उस पर चर्चा भी करेंगे | लेकिन अभी तक मसौदे में किये गये उपरोक्त संशोधनों से यह बात समझना कतइ मुश्किल नही है कि , ये संशोधन किसानो द्वारा नही , बल्कि बड़े उद्योगपतियों , व्यापारियों द्वारा कराए गये है | कयोंकि भूमि अधिग्रहण से सम्बन्धित मसौदे व विधेयक को किसानो को बताने और उनकी राय जान्ने का तो कोई प्रयास ही नही किया गया | 29 जुलाई को पेश किये गये मसौदे का कोई सरकुलर ग्राम सभाओं तक को नही भेजा गया | फिर 26 जुलाई को जारी किये गये मसौदे के केवल एक माह बाद उसे विधेयक या कानून का रूप देने में यह बात स्पष्ट है कि इस मसौदे पर कृषि - भूमि के मालिक से कोई राय नही ली जानी थी | इनकी जगह भूमि अधिग्रहण के घोर समर्थक भूमि लोलुप कम्पनियों के प्रमुखों व डेवलपरो आदि जैसे गैर किसान , धनाढ्य वर्गो की ही राय ली जाने वाली थी | कयोंकि वे ही सत्ता सरकार से अपने हितो में नीतियों , मसौदो , विधेयको को बनाने व लागू करने - करवाने के लिए सत्ता सरकार के इर्द - गिर्द मडराते रहते है | सरकारे भी इन्ही की सुनती है |इनसे ही राय मशविरा करती है | साफ़ बात है कि यह मसौदा भी उन्ही के लिए जारी किया गया था , न कि किसानो तथा अन्य ग्रामीण हिस्सों के लिए | क्या यह कृषि भूमि पर किसानो व अन्य ग्रामवासियों से जुड़े अहम मुद्दे पर उकी अनदेखी करने का अन्याय नही है ? एकदम है | लेकिन इसे कहेगा कौन ? केन्द्रीय सरकार में बैठी पार्टियों ने तो अन्याय किया ही है , लेकिन विरोधी पार्टियों ने भी सरकार पर उस मसौदे के बारे में किसानो से राय मशविरा लेने की कोई बात नही करके उसी अन्याय का साथ दिया है | ज्यादातर प्रचार माध्यमि बौद्धिक हिस्सों ने भी इसी अन्याय का साथ दिया है | इसलिए अब इस अन्याय का प्रतिकार भूमि अधिग्रहण का मार सहने वाले किसानो और उससे ग्रामीणों को ही करना होगा | उन्हें भूमि अधिग्रहण और उसके मसौदो को , उसमे किये जाते रहे संशोधनों को स्वंय अपनी चर्चा का तथा विरोध का विषय बनाना होगा | यह विरोध संगठित रूप और व्यापक रूप में , गाँव स्तर से लेकर देश स्तर पर किये जाने की आवश्यकता हैं | इसके लिए उन्हें अपनी किसान समितियों और महा समितियों को भी जरुर खड़ा करना होगा | ताकि इसके जरिये वे किसान विरोधी नीतियों के विरोध के साथ कृषि विकास , कृषि सुरक्षा की मांग खड़ी कर सके | उसके लिए सरकारों पर बराबर दबाव डाल सकें | हम कब सचेत होंगे जब हमसे सब कुछ छीन जाएगा ?


सुनील दत्ता
पत्रकार

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