नया भूमि अधिग्रहण विधयेक और उसके मसौदे में संशोधन
( क्या किसानो के हित में , या किसानो के विरोध में )
इस
अन्याय का प्रतिकार भूमि अधिग्रहण का मार सहने वाले किसानो और उससे
ग्रामीणों को ही करना होगा | उन्हें भूमि अधिग्रहण और उसके मसौदा को , उसमे
किये जाते रहे संशोधनों को स्वंय अपनी चर्चा का तथा विरोध का विषय बनाना
होगा
नया भूमि अधिग्रहण
विधेयक लोकसभा में पेश किया जा चुका है | इसका मसौदा 29 जुलाई को जारी किया
गया था | 5 सितम्बर के समाचार पत्रों में इस मसौदे का वह संशोधित रूप
प्रकाशित हुआ , जिसे संसद में पास करवा कर कानून का रूप दिया जाना है | यही
कानून , भूमि अधिग्रहण के 1894 के कानून की जगह लेगा | संसद में बहस के
बाद यह कानून के रूप में कैसे सामने आता है , यह बाद की बात है | पर
दिलचस्प बात यह है कि 29 जुलाई को देशव्यापी राय मशविरे के लिए जारी मसौदे
में कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण बदलाव कर दिये गये है | इस बदलाव के लिए सरकार
को किसने सलाह दी ? क्या किसानो ने ?एकदम नही | किसानो या किसान संगठनों कि
राय तो कही चर्चा तक में नही आई | लेकिन उद्योगपतियों के संगठनों और
प्रचार माध्यमी जगत के दिग्गजों कि राय जरुर आती रही | इस संदर्भ में
समाचार पत्रों में सूचनाये भी प्रकाशित होती रही | बेहतर है कि किसी भी
नतीजे पर पहुचने से पहले मसौदे में दिये गये बदलाव को मोटे तौर पर देख लिया
जाए
1 . 29
जुलाई को जारी किये गये मसौदे में यह कहा गया था कि , खेती योग्य और
सिंचित जमीन का अधिग्रहण नही किया जाएगा |लेकिन उद्योगपतियों के संगठनों और
उनके समर्थको के खुले दबाव के बाद इसके अधिग्रहण को हरी झंडी दे दी गयी है
| बड़े उद्योगपतियों के संगठन "पिक्की " द्वारा मसौदे पर सुझाव के रूप में
यह बयान समाचार पत्र में प्रकाशित भी हुआ है | हाँ , इस सुझाव
में सांत्वना के तौर पर ग्रामीण विकास मंत्री ने विधेयक में यह प्राविधान
जोड़ दिया है कि ( लेकिन कितने दिन बाद , यह अनिश्चित है ) उस जिले में
उतनी कृषि भूमि का सिंचित भूमि में विकास कर दिया जाएगा |
2--- जुलाई
के मसौदे में ग्रामीण इलाको कि जमीन का मुआवजा बाज़ार दर से 6 गुना ज्यादा
दिये जाने का प्रस्ताव किया गया था | अब अधिग्रहण के बाद मुआवजे कि रकम अदा
करने वाली कम्पनियों , डेवलपरो के दबाव में उसे घटाकर 4 गुना कर दिया गया
है |
3--- तीसरा और
अत्यंत महत्वपूर्ण बदलाव - मसौदे में यह प्रस्तावित था कि 5 साल तक
अधिग्रहित भूमि का घोषित उद्देश्य के लिए न इस्तेमाल किये जा सकने कि
स्थिति में वह जमीन किसानो एवं ग्रामवासियों को लौटा दी जायेगी | लेकिन अब
नये संशोधन के अनुसार अब वह जमीन इस्तेमाल न किये जाने के वावजूद जमीन के
मालिक किसानो को बिलकुल लौटाई नही जायेगी | अब वह भूमि राज्य भूमि
प्राधिकरण के कब्जे में चली जायेगी | कुछ समाचार पत्रों में यह सुचना भी आई
थी कि 5 वर्ष कि मियाद को संशोधित करके 10 वर्ष कर दिया जाना है | अर्थात
10 साल तक अधिग्रहित जमीन का इस्तेमाल न होने पर वह राज्य भूमि प्राधिकरण
के कब्जे में चली जायेगी |
इसके
अलावा मसौदे के कई अन्य सुझावों में बदलाव किये गये है | जिन्हें हम कानून
के रूप में आने के बाद प्रस्तुत करेंगे और उस पर चर्चा भी करेंगे | लेकिन
अभी तक मसौदे में किये गये उपरोक्त संशोधनों से यह बात समझना कतइ मुश्किल
नही है कि , ये संशोधन किसानो द्वारा नही , बल्कि बड़े उद्योगपतियों ,
व्यापारियों द्वारा कराए गये है | कयोंकि भूमि अधिग्रहण से सम्बन्धित मसौदे
व विधेयक को किसानो को बताने और उनकी राय जान्ने का तो कोई प्रयास ही नही
किया गया | 29 जुलाई को पेश किये गये मसौदे का कोई सरकुलर ग्राम सभाओं तक
को नही भेजा गया | फिर 26 जुलाई को जारी किये गये मसौदे के केवल एक माह बाद
उसे विधेयक या कानून का रूप देने में यह बात स्पष्ट है कि इस मसौदे पर
कृषि - भूमि के मालिक से कोई राय नही ली जानी थी | इनकी जगह भूमि अधिग्रहण
के घोर समर्थक भूमि लोलुप कम्पनियों के प्रमुखों व डेवलपरो आदि जैसे गैर
किसान , धनाढ्य वर्गो की ही राय ली जाने वाली थी | कयोंकि वे ही सत्ता
सरकार से अपने हितो में नीतियों , मसौदो , विधेयको को बनाने व लागू करने -
करवाने के लिए सत्ता सरकार के इर्द - गिर्द मडराते रहते है | सरकारे भी
इन्ही की सुनती है |इनसे ही राय मशविरा करती है | साफ़ बात है कि यह मसौदा
भी उन्ही के लिए जारी किया गया था , न कि किसानो तथा अन्य ग्रामीण हिस्सों
के लिए | क्या यह कृषि भूमि पर किसानो व अन्य ग्रामवासियों से जुड़े अहम
मुद्दे पर उकी अनदेखी करने का अन्याय नही है ? एकदम है | लेकिन इसे कहेगा
कौन ? केन्द्रीय सरकार में बैठी पार्टियों ने तो अन्याय किया ही है , लेकिन
विरोधी पार्टियों ने भी सरकार पर उस मसौदे के बारे में किसानो से राय
मशविरा लेने की कोई बात नही करके उसी अन्याय का साथ दिया है | ज्यादातर
प्रचार माध्यमि बौद्धिक हिस्सों ने भी इसी अन्याय का साथ दिया है | इसलिए अब इस अन्याय का प्रतिकार भूमि अधिग्रहण का मार सहने वाले किसानो और उससे ग्रामीणों को ही करना होगा |
उन्हें भूमि अधिग्रहण और उसके मसौदो को , उसमे किये जाते रहे संशोधनों को
स्वंय अपनी चर्चा का तथा विरोध का विषय बनाना होगा | यह विरोध संगठित रूप
और व्यापक रूप में , गाँव स्तर से लेकर देश स्तर पर किये जाने की आवश्यकता
हैं | इसके लिए उन्हें अपनी किसान समितियों और महा समितियों को भी जरुर
खड़ा करना होगा | ताकि इसके जरिये वे किसान विरोधी नीतियों के विरोध के साथ
कृषि विकास , कृषि सुरक्षा की मांग खड़ी कर सके | उसके लिए सरकारों पर
बराबर दबाव डाल सकें | हम कब सचेत होंगे जब हमसे सब कुछ छीन जाएगा ?
सुनील दत्ता
पत्रकार
No comments:
Post a Comment