Friday, January 23, 2015

प्रकृति अपने सबसे अनुपम स्वरूप में नजर आती है | 24-1-15

ऋतुराज बसंत -------

प्रकृति अपने सबसे अनुपम स्वरूप में नजर आती है |




पतझड़ और बहार की संधि ऋतु .. शीत व ग्रीष्म को जोड़ने वाला सेतु है बसंत . प्रकृति के श्रृगार का उत्सव है बसंत | माघ के शुकल पक्ष के पांचवे दिन हम बसंत के आगमन पर  बसंत पंचमी उत्सव  के रूप में इसका स्वागत करते है |
पौराणिक कथाओ के अनुसार बसंत चूकी ऋतुओ का राजा  है , इसलिए सारे ऋतुओ ने अपने हिस्से के आठ -- आठ दिन बसंत को दिए .... इस तरह बसंत चालीस दिन की ऋतु मानी जाती है |

बसंत ऋतु से सम्बन्धित कई सारी कथाये है , हमारे साहित्य , संगीत , नृत्य , चित्रकला व विविध कलाओ का समागम है बसंत इसका हर कोना अपने आप महकता रहता है | अगर देखा जाए तो बसंत महज एक ऋतु नही है . यह एक जीवन दर्शन है जीवन शैली है | सर्दी के सीलन भरे अँधेरे दिनों से निकल कर जब प्रकृति सूर्य के आलोक में मुस्कुराती है तो हर कही रंग , सुगंध और सौन्दर्य की सृष्टि होती है | यु ही नही बसंत को ऋतुराज कहा जाता है | ये भवरो के गुंजन , आम के बौराने , फूलो के खिलने और कलियों के चटखने का मौसम है | हल्के - सुहाने दिनों की ऋतु मन - मस्तिष्क को गहरे से प्रभावित करती है ऐसे में साहित्य शिल्पी हो या छाया शिल्पी  व  रंग शिल्पी उनके सृजन मन को तरंगित करती है और वह नये सृजन का कार्य बड़े मोहक अंदाज में करते है | इस खुबसूरत ऋतु में  मानव मन उल्लास  से भर जाता है हृदय के उमंगो को पंख लग जाते है - हल्की - हल्की , सुहानी बयार जैसे शीत के सारे संताप मिटा देती है | प्रकृति को नवाकुरो का उपहार देती है |  पतझड़ से सुनी पड़ी डालियों पर कोपले आने लगती है | मानो प्रकृति ये सन्देश देना चाहती है कि कुछ भी स्थायी नही होता | यदि सर्दी का कठिन दौर आयेगा तो बसंत भी आयेगा ही | चाहे कुछ हो हर वक्त एक -- सा नही होता है |


कला व साहित्य में बसंत

बसंत तो है ही सृजन की ऋतु ... यू ही नही बसंत पंचमी पर कला -- साहित्य की देवी सरस्वती की पूजा होती है  | जब मन तंग में हो , प्रकृति उत्सव के दौर में हो .. तो हम इंसान कैसे इससे अलग रह सकते है ? जीवन का सौन्दर्य उमड़ - घुमड़कर बरसता है और रचता है . अपनी ख़ुशी व्यक्त करता है सुर .. शब्द लय. ताल .. रंग के माध्यम से | हमारे प्राचीन साहित्य में बसंत को कामदेव का स्वरूप कहा गया है वही कामदेव जब गन्नो के धनुष पर . भवरो की पात की डोरी बाँध रंग - बिरंगे फूलो के बाण चढाए निकलता है . तब आम लोगो की तो बिसात ही क्या , देवधि देव महादेव भी उसके प्रभाव से बच नही पाते , कालिदास ने अपने महाकाव्य कुमार सम्भव में इस प्रसंग का विशद वर्णन किया है | कलाकार साहित्य को संगीत , नृत्य और चित्रकला में  ढालते नजर आते है  | कालिदास के साहित्य के चित्र इसी का उदाहरण है | संगीत में भी बसंत अपने पूरे राग - रंग के साथ उपस्थित है |



मन - भावन बसंत


प्रकृति का प्रभाव इतना अधिक होता है कि वर्ष में परिवर्तित होने वाले मौसम में भी मनुष्य के मन मस्तिष्क को प्रभावित एवं परिवर्तित करते है | शोध से ज्ञात होता है कि वे लोग जो मानसिक समस्याओं से घिरे हुए है बसंत ऋतू में वे बेहतर महसूस करते है |
बसंत ऋतु में रंगों की विविधता भी मानव के व्यवहार और उसके मनोबल को प्रभावित करती है | नीला आसमान , हरी - भरी धरती , रंग - बिरंगे फूल और सुन्दर कलिया यह सब मनुष्य के शरीर और उसकी आत्मा पर सकारात्मक प्रभाव डालते है |

इस बारे में ईरान  के मनोविशेषज्ञ डा इब्राहिमी मुकद्दम का कहना है कि जिस तरह बसंत ऋतू के दौरान हमारे इर्दगिर्द हरा , नीला , लाल और पीले रंग बहुतायत में दिखाई देते है और हमारी आत्मा तथा शरीर पर इन रगों का उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है | आकाश का नीला रंग शान्ति , सहमती , स्वभाव में नरमी तथा प्रेम का आभास करता है | हरा रंग सम्बन्ध की भावना तथा आत्म सम्मान की भावना को उंचा रखता है | लाल रंग कामना , उत्साह तथा आशा , विशेष प्रकार के आंतरिक झुकाव को उभारता है | सूर्य का पीले रंग का प्रकाश और कलियों का चटखना  भविष्य के बारे में सकारात्मक सोच तथा कुछ कर गुजरने की भावना उत्पन्न  करती है |

प्रकृति के रंग
यह भी एक वास्तविकता है कि बसंत के सुन्दर मौसम में प्रकृति में फैले संगीत को सुनने से मनुष्य के भीतर विशेष प्रकार के आनन्द का आभास होता है | जैसे पत्तो के आपस में टकराने की आवाज , चिडियों के चहचहाने की आवाजे या फिर बहने वाली नदियों से उत्पन्न होने वाली कल - कल की ध्वनी . कोयल भी इन्ही दिनों में कूकती है रंग - रंग के फूल खिलते है . प्रकृति अपने सबसे अनुपम स्वरूप में नजर आती है |


जीवन का गूढ़ दर्शन


बसंत सिर्फ सौन्दर्य , राग - रंग और मादकता की ऋतू नही है ये जीवन का गूढ़ दर्शन भी देती है | शीत से झुलसे पेड़ो और झरे हुए पत्तो के बाद नई कोपले बसंत में ही आती है |  ये इस बात का प्रतीक है कि जीवन किसी एक बिंदु पर ठहरता नही है | ये चलता रहता है निरन्तर यही निरंतरता एक उम्मीद है | पतझड़ के बाद बसंत आता ही है | बसंत को आना ही होता है | ये सिर्फ प्रकृति पर ही नही , बल्कि हमारे जीवन पर भी लागू होता है | हर दुःख का अंत होता है हर बुरा वक्त गुजरता ही है | बसंत आशा का उत्सव भी है उम्मीद का आधार भी |


प्रकृति और जीवन का सम 


न सर्दी , न गर्मी ऐसा होता है बसंत सर्दी का उतार  और गर्मी की आमद के बीच एक सेतु की तरह आता है | इसी तरह ये बसंत इस बात का संदेश है कि जीवन हर वक्त सुख और दुःख की लहरों पर सवारी नही करता है | ज्यादातर वक्त वह सम पर होता है | यही जीवन है , यही जीवन का सार भी है |

3 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (25-01-2015) को "मुखर होती एक मूक वेदना" (चर्चा-1869) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    बसन्तपञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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