Wednesday, January 7, 2015

शालीनता ---- ------------------------- 8-1-15

शालीनता ----




रूस में आस्पेस्की नामक एक महान विचारक हुए है | एक बार वे संत गुरजियफ से मिलने उनके आवास पर पहुचे | दोनों के बीच विभिन्न  विषयों को लेकर चर्चा चल पड़ी | बातचीत के दौरान आस्पेस्की ने संत गुरजियफ़ से कहा -- वैसे तो मैंने गहन अध्ययन और अपने अनुभव के  जरिये   अर्जित कर लिया है , पर मैं कुछ और भी जानना चाहता हूँ | क्या आप मेरी इसमें मदद कर सकते है ? गुरजियफ़ जानते थे कि आस्पेस्की अपने विषय के प्रकांड विद्वान् है . जिसका किंचित उन्हें दंभ भी है , अत: सीधी बात करने से कोई प्रयोजन सिद्द नही होगा | उन्होंने कुछ देर सोचने के बाद एक कोरा कागज उठाया  और उसे आस्पेस्की की ओर बढाते हुए बोले -- यह अच्छी बात है कि तुम कुछ सीखना चाहते हो | लेकिन मैं कैसे समझू कि तुमने अब तक क्या -- क्या सीख  लिया है और क्या नही सीखा  है | अत: तुम ऐसा करो कि जो कुछ भी जानते हो और जो नही जानते हो उस  दोनों के बारे में इस कागज पर लिख दो | जो तुम पहले से ही जानते हो उसके बारे में तो चर्चा करना फिजूल है और जो कुछ तुम नही जानते , उस पर ही चर्चा करना उचित होगा | बात एकदम सरल थी . लेकिन आस्पेस्की के लिए बहुत कठिन हो गयी | उसका ज्ञानी होने  का अभिमान चूर - चूर हो गया | आस्पेस्की आत्मा और परमात्मा जैसे विषय के बारे में तो बहुत जानते थे , लेकिन तत्व - स्वरूप और भेद - अभेद के बारे में उन्होंने सोचा तक नही था | गुरजियफ़ की बात सुनकर वे सोच में पड़ गये | काफी देर सोचने के बाद भी उन्हें कुछ नही सुझा | आखिरकार उन्होंने वह कोरा कागज ज्यो का त्यों गुरजियफ़ के चरणों में रख दिया और बोले -- महोदय मैं तो कुछ भी नही जानता | आज आपने मेरी आँखे खोल दी | आस्पेस्की के विनम्रता पूर्वक कहे गये इन शब्दों से गुरजियफ़ बेहद प्रभावित हुए और बोले -- ठीक है , अब तुमने जानने योग्य पहली बात जान ली है कि तुम कुछ नही जानते | यही ज्ञान की प्रथम सीढी है | अब तुम्हे कुछ सिखाया और बताया जा सकता है | सार यह है कि रीते घड़े   को भरा जानकर सम्भव है , लेकिन अंहकार से परिपूर्ण घड़े  में तो बूंद भर ज्ञान नही भरा जा सकता | हम स्वंय को रीता बनाना सीखे तभी तो  ज्ञानार्जन के लिहाज से सुपात्र बन सकेगे |

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