संत की सीख
नदी किनारे एक मल्लाह रहता था | वह यात्रियों को बिठाकर नदी के उस पार ले जाता और इससे होने वाली आमदनी से उसके परिवार का खर्चा चलता था | मल्लाह मनमौजी किस्म का था | वह लोगो को नदी पार कराने के लिए बिना किराया तय किये ही बैठा लेता और उस पार उतारने पर उनसे पैसा माँगता , जिसको लेकर कई बार झन्झट हो जता | मल्लाह गुस्से में आकर कटु शब्द भी बोल देता , जिससे उसकी मुसाफिरो के हाथो आये दिन पिटाई भी होती | एक दिन एक संत उसकी नाव में नदी के उस पार जाने के लिए सवार हुए | मल्लाह की श्थिति के बारे में जान उन्होंने उसे रास्ते में दो शिक्षाए दी | एक तो यह है कि यात्रियों को नाव में चढाने से पहले ही किराया से लिया जाए या तय कर लिया जाए और दूसरी बात , वह बात - बात में आवेश में न आया करे | इसी तरह बातचीत करते - करते रास्ता कट गया | नाव से उतरने पर मल्लाह ने संत से किराया माँगा इस पर संत ने कहा -- वत्स हम जो संत है | हमारे पास कोई रुपया -- पैसा नही जो हम तुम्हे दे सके | हालाकि मैंने तुम्हे जो शिक्षाए दी है , वे भी कम मूल्यवान नही | यदि तुम उन पर अमल करो तो तुम्हारा जीवन बदल जाएगा | यह सुनकर मल्लाह बोला -- ' मुझे शिक्षा नही पैसा चाहिए
उसके बगैर मैं आपको यहाँ से नही जाने दूंगा
' मल्लाह का गुस्सा बढने लगा | इतने में वहा मल्लाह की पत्नी भोजन लेकर आई | संत को देखकर उसने उन्हें प्रणाम किया और अपने पति को समझाते हुए बोली --- ये बहुत ग्यानी संत है | राजा भी इन्हें बहुत मान देते है | इनसे झगड़ना ठीक नही है | यह सुनकर मल्लाह का क्रोध और भड़क गया और उसने थाली सहित भोजन उठाकर नदी में फेंक दिया | समाचार रजा तक पहुचा | उन्होंने सैनको को भेजकर मल्लाह को बंदी बनाते हुए कारागार में डलवा दिया और उसकी नाव भी जब्त कर ली | संत ने जाकर उसे छुडाया और उसे समझाते हुए कहा -- '' मैंने तुम्हे जो दो सीखे दी है , तुम उन पर चलकर तो देखो | इससे तुम्हे आर्थिक लाभ होगा और तुम्हारा जीवन भी सुखी हो जाएगा | मल्लाह की समझ में अब वे शिक्षाए आई और वह उनके अनुसार आचरण करते हुए सुखी जीवन व्यतीत करने लगा |
नदी किनारे एक मल्लाह रहता था | वह यात्रियों को बिठाकर नदी के उस पार ले जाता और इससे होने वाली आमदनी से उसके परिवार का खर्चा चलता था | मल्लाह मनमौजी किस्म का था | वह लोगो को नदी पार कराने के लिए बिना किराया तय किये ही बैठा लेता और उस पार उतारने पर उनसे पैसा माँगता , जिसको लेकर कई बार झन्झट हो जता | मल्लाह गुस्से में आकर कटु शब्द भी बोल देता , जिससे उसकी मुसाफिरो के हाथो आये दिन पिटाई भी होती | एक दिन एक संत उसकी नाव में नदी के उस पार जाने के लिए सवार हुए | मल्लाह की श्थिति के बारे में जान उन्होंने उसे रास्ते में दो शिक्षाए दी | एक तो यह है कि यात्रियों को नाव में चढाने से पहले ही किराया से लिया जाए या तय कर लिया जाए और दूसरी बात , वह बात - बात में आवेश में न आया करे | इसी तरह बातचीत करते - करते रास्ता कट गया | नाव से उतरने पर मल्लाह ने संत से किराया माँगा इस पर संत ने कहा -- वत्स हम जो संत है | हमारे पास कोई रुपया -- पैसा नही जो हम तुम्हे दे सके | हालाकि मैंने तुम्हे जो शिक्षाए दी है , वे भी कम मूल्यवान नही | यदि तुम उन पर अमल करो तो तुम्हारा जीवन बदल जाएगा | यह सुनकर मल्लाह बोला -- ' मुझे शिक्षा नही पैसा चाहिए
उसके बगैर मैं आपको यहाँ से नही जाने दूंगा
' मल्लाह का गुस्सा बढने लगा | इतने में वहा मल्लाह की पत्नी भोजन लेकर आई | संत को देखकर उसने उन्हें प्रणाम किया और अपने पति को समझाते हुए बोली --- ये बहुत ग्यानी संत है | राजा भी इन्हें बहुत मान देते है | इनसे झगड़ना ठीक नही है | यह सुनकर मल्लाह का क्रोध और भड़क गया और उसने थाली सहित भोजन उठाकर नदी में फेंक दिया | समाचार रजा तक पहुचा | उन्होंने सैनको को भेजकर मल्लाह को बंदी बनाते हुए कारागार में डलवा दिया और उसकी नाव भी जब्त कर ली | संत ने जाकर उसे छुडाया और उसे समझाते हुए कहा -- '' मैंने तुम्हे जो दो सीखे दी है , तुम उन पर चलकर तो देखो | इससे तुम्हे आर्थिक लाभ होगा और तुम्हारा जीवन भी सुखी हो जाएगा | मल्लाह की समझ में अब वे शिक्षाए आई और वह उनके अनुसार आचरण करते हुए सुखी जीवन व्यतीत करने लगा |
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