Friday, January 30, 2015

प्रेरणा के स्वर

प्रेरणा के स्वर

एक पुरानी कथा है | एक सम्राट के दरबार में बाहरी देश से आया एक चारण पहुचा | उसने सम्राट की स्तुति में अनेक सुन्दर - सुन्दर गीत प्रस्तुत किये | उन गीतों ने सम्राट के साथ - साथ दरबारियों का भी मन मोह लिया | यह सब उस चारण ने कुछ पाने की लालसा से किया था | जब उसका स्तुतिगान खत्म हुआ तो सम्राट ने खुश होकर सोने की बहुत सी मुहरे उसे भेंट की | इन मुहरो को पाकर चारण बहुत खुश हुआ  | पर जैसे ही उसने इन मुहरो पर नजर डाली उसके भीतर मानो कुछ कौध गया | एक चमक उसकी चेतना में बिखर गयी  | अब उसके चेहरे के भाव बिलकुल बदल गये | उसने आकाश की ओर कृतज्ञता भरी नजरो से देखा | उसे लगा कि मानो आकाश भी मौन स्वर में उसके अंतर्भावो के साथ सहमती जता रहा है | अब उसने मोहरे वही छोड़ दी और नाचने लगा | एक अनूठी कृतज्ञता उसके मुखमंडल पर छा  गई  | उसके हाव - भाव पूरी तरह बदल चुके थे | उन मुहरो को देखकर उसमे ना जाने जैसी क्रान्ति हो गयी थी | अब वह चारण नही रहा , वरन संत हो गया | उसकी अंतर्चेतना में कामना के बजाए प्रेरणा के स्वर गुजने लगे | काफी अरसा गुजरने के बाद एक दिन किसी ने उससे पूछा -- ' क्यों भाई , ऐसा क्या था उन मुहरो में ? क्या वे जादुई थी ? इस पर वो हंसा और बोला -- मुहरे जादुई नही थी | वह वाक्य जादुई था जो उन पर लिखा था | ' कुछ पलो की आत्मनिमग्नता के बाद उसने अपनी बात पूरी की -- '' उन मुहरो पर लिखा था -- जीवन की सभी आवश्यकताओ के लिए परमात्मा पर्याप्त है | '' उसने इस बात का सार समझाते हुए आगे कहा -- जो इस बात को जानते है , वे सभी इस सच की गवाही देते है | जिनके पास सब कुछ है , सारा ऐश्वर है , ईश्वर के बिना वे दरिद्र दिखाई देते है |  वही ऐसे सम्पत्तिशाली भी है , जिनके पास कुछ भी नही , केवल वे संतुष्ट है वो सुखी है | जिन्हें सब पाना है , उन्हें सब छोड़ देना होगा | जो सब कुछ छोड़ने का साहस रखते है , वे स्वंय को पा  लेते है | उनके सामने अनायास ही सत्य उजागर हो जाता है |

4 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (01-02-2015) को "जिन्दगी की जंग में" (चर्चा-1876) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत अच्छा लिखा है ... ये ज्ञान किस्मत वालों को मिलता है ...

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  3. बहुत अच्छा लिखा है .

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