Wednesday, January 21, 2015

नतमस्तक ------- 22-1 -15

नतमस्तक  -------



महान तर्कशास्त्री आचार्य  रामनाथ नवद्दीप के समीप एक छोटी - सी जगह में छात्रो को पढाते थे| उस समय कृष्णनगर के राजा शिवचंद्र थे . जो नीतिकुशल शासक होने के साथ - साथ विद्यानुरागी भी थे | उन्होंने भी आचार्य  रामनाथ की कीर्ति सुनी  | पर यह जानकार उन्हें दुःख हुआ कि ऐसा विद्वान् गरीबी में दिन गुजार रहा है  | एक दिन राजा स्वंय पंडित जी से मिलने उनकी कुटिया में जा पहुचे  | आचार्य  जी ने राजा का यथोचित स्वागत किया | कुशलक्षेम पूछने के बाद राजा ने कहा -- आचार्य  प्रवर , मैं आपकी कुछ मदद करना चाहता हूँ  | यह सुनकर आचार्य  रामनाथ ने जबाब दिया -- राजन भगवत्कृपा ने मेरे सारे अभाव मिटा दिए है | मुझे किसी चीज की आवश्यकता नही | तब राजा बोले - विद्वतवर . मैं घर खर्च के बारे में पूछ रहा हूँ | सम्भव है उसमे कुछ कठिनाई आ रही हो  | राजा की मन: स्थिति जान आचार्य  रामनाथ बोले -- घर खर्च के बारे में गृहस्वामिनी मुझसे अधिक जानती है | आप उन्ही से पूछ लें  | राजा ने साध्वी गृहणी के समक्ष पहुचकर कहा -- ' माता , घर खर्च के लिए कोई कमी तो नही  ? सादगी की मूरत गृहणी ने कहा - ' भला सर्व - समर्थ परमेश्वर के रहते उनके भक्तो को क्या कमी रह सकती है ? ' फिर भी माता ... ' लग रहा था कि राजा कुछ और सुनने के इच्छुक है | तब गृहणी ने कहा -- ' महाराज , वाकई हमे कोई कमी नही है |पहनने को कपडे है | सोने को बिचौना है | पानी रखने के लिए मिटटी का घडा है | भोजन की खातिर विद्यार्थी सीधा ले आते है | कुटिया के बाहर खड़ी चौराई  का साग हो जाता है | भला इससे अधिक की जरुरत भी क्या है ? उस मातृस्वरूपा नारी के ये वचन सुनकर राजा मन ही मन श्रद्दावनत हो गये | फिर भी उन्होंने आग्रह किया -- ' देवी , हम चाहते है कि आपको कुछ गाँवों की जागीर प्रदान करे | इससे होने वाली आय से गुरुकुल भी ठीक  तरह से चल सकेगा और आपके जीवन में भी कोई अभाव नही होगा | ' यह सुनकर गृहणी मुस्कुराई और बोली
' राजन , इस संसार में परमात्मा ने हर मनुष्य को जीवनरूपी जागीर पहले से दे रखी  है | जो जीवन कि इस जागीर को अच्छी तरह से सभालना सीख  जाता है , उसे फिर किसी चीज का अभाव नही रह जाता " यह सुनकर राजा का मस्तक इस संतोषी और श्रुत - साधक आचार्य दम्पत्ति के चरणों में झुक गया  |

No comments:

Post a Comment