संसार की पहली हड़ताल --
'' हम भूखे है , हम भूखे है ''
( हड़ताल मजदूरो का अत्यंत प्रभावशाली हथियार है , जिसकी शुरुआत आज से लगभग तीन हजार दो सौ वर्ष पूर्व रेमसे राजवंश के शासनकाल में हुई थी | इस लड़ाई में न केवल कामगारों की जीत हुई , बल्कि देखते - ही देखते यह पूरे देश में मजदूरो की शक्ति बनकर उभरी |
संसार की सबसे पहली हड़ताल आज से लगभग तीन हजार दो सौ वर्ष पूर्व हुई थी | जब विकसित उद्योग अस्तित्व में नही आये थे | यह हड़ताल 1170 ई. पूर्व मिस्र में हुई थी , जहा उस समय रेमसे राजवंश चल रहा था | 1200 से 1085 ई पूर्व रेमसे -- तृतीय से रेमसे - नवम का काल रहा है |
यह देखना रोचक होगा कि उस समय श्रमिक की परिभाषा में कौन - कौन - से कामगार आते थे और उनकी कार्य दशाये , जो हडतालो का मूल कारण होती है , कैसी थी ! श्रमिको के क्रमानुसार फोरमैन, क्लर्क , नक्शानवीस, वास्तुशिल्पी ,पेंटर ,खनक ,राजमिस्त्री और अकुशल मजदुर आते थे |
ये राजा , जमीदारो और पुरोहितो द्वारा महल मंदिर और समाधियो के निर्माण कार्य में लगाये जाते थे | राजा के यहाँ सुनार , सराफ , बुनकर और बढ़ई भी काम करते थे | सेना को रथ , कवच , नाव आदि बनवाने के लिए लुहार , बढ़ई और श्रमिको की आवश्यकता पड़ती थी |
कामगारों की स्थिति किसानो से बेहतर थे | ये किसान भी नील नदी में बाढ़ आ जाने पर , खेतो से पानी निकलने और सूखने तक मजदूरी करते थे | श्रमिको के घर कच्ची ईटो के बने होते थे | '' राजाओं ' की घाटी "" के पास डीईर - एल - मेडीनेह में एक ऐसा गाँव भी था जहा पांच सौ सालो से केवल वे ही श्रमिक और उनके वंशज रहते चले आये थे , जो सिर्फ राजाओं की समाधिया बनाने और उन्हें अलंकृत करने का काम करते थे |
श्रमिको की कार्य दशाये दुष्कर नही थी | काम की पालिया दस - दस दिन की होती थी | छुट्टी देने के नियम उदार थी | बीमारी होने पर ही नही उसके लक्षणों के आधार पर ही छुट्टी मिल जाती थी |
बीमारी की परिभाषा विस्तृत थी | अभिलेखों में एक मामला दर्ज पाया गया है कि एक कामगार को इसलिए छुट्टी दे दी गयी , क्योकि वह बीबी द्वारा पिटाई किये जाने के कारण शरीर दर्द से पीड़ित था |
वेतन का भुगतान वस्तु रूप में होता था | मुद्रा का प्रचलन न होने के कारण वेतन रोटी , बीयर , फलियों , प्याज , सूखे मांस , वसा और नकम के रूप में दिया जाता था | कामगारों की श्रेणियों निर्धारित थी और उसी के अनुसार उन्हें वस्तु या वस्तुए वेतन के रूप में मिलती थी |
लगभग 1170 ई पु में सरकार लगातार दो महीने तक वेतन नही दे पाई | यह वह समय था , जब मिश्र राजवंश का सितारा डूबने लगा था और राजकोष खाली हो चला था | वेतन खाद्य वस्तुओ के रूप में होता था इस कारण श्रमिको द्वारा अधिकतर वस्तुओ का संग्रह नही किया जा सकता था | अत: रोज कुआ खोदकर पानी पीने वाली बात थी | अचानक एक दिन थेबीज में नेक्रोपोलिस के कामगारों ने अपने औजार फेंक दिए और '' हम भूखे है , हम भूखे है '' चिल्लाते हुए काम छोड़कर बाहर निकल आये | वे रेमसे - द्दितीय के समाधि -- मंदिर तक पहुचे और उसकी दीवार के बाहर जूते हुए खेतो की मेड पर बैठ गये |
तीन अधिकारी उन्हें समझाने आये , उन्हें आश्वासन दिए और काम पर लौटने को कहा | पर भूखा पेट कोई उपदेश नही सुनता | अत: वे नही माने | अगले दिन उन्होंने जलूस निकाला | तीसरे दिन श्रमिक फिर हड़ताल पर रहे और जलूस के रूप में मंदिर के अहाते में पहुच गये | वे सयमित थे पर वेतन भुगतान की अपनी मांग पर डटे रहे | एक महीने बाद सरकार के कान पर जू रेगी और श्रमिको को तीस दिन के वेतन के रूप में राशन दिया गया | जिसे लेकर भी उन्होंने हड़ताल नही तोड़ी | उसके बाद आठ दिन हड़ताल और चली | जब उन्हें दूसरे महीने का भी वेतन मिल गया तभी वे काम पर लौटे |
राजकोष की स्थिति खराब होने के कारण कुछ समय बाद फिर वेतन का भुगतान बंद हो गया | फिर हड़ताल हुई , परन्तु इस बार उन्हें कोई भी अधिकारी आश्वासन देने नही आया | अत: श्रमिको को इस आशंका ने ग्रसित कर लिया कि हड़ताल चाहे कितने दिन चले उन्हें वेतन मिलने वाला नही | सरकार की उपेक्षा के कारण हड़ताल से सयम और अनुशासन के तत्व विलीन हो गये | श्रमिक घोर निराशा में डूब गये | अत: अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए वे समाधि स्थलों पर लूटपाट करने लगे और उससे मिली वस्तुओ के बदले अनाज प्राप्त करने लगे | यह कार्य सरकारी अधिकारियों की शह पर होता था , जो लुट में से अपना हिस्सा लेकर इस और से अपनी आँखे मुड़ते रहते थे | इस प्रकार राजा की उपेक्षा के कारण वे असंतुष्ट कामगार लुटेरे तक बन गये |
लेखक - सुधीर निगम साभार - अहा ! जिन्दगी जनवरी 15 अंक से
'' हम भूखे है , हम भूखे है ''
( हड़ताल मजदूरो का अत्यंत प्रभावशाली हथियार है , जिसकी शुरुआत आज से लगभग तीन हजार दो सौ वर्ष पूर्व रेमसे राजवंश के शासनकाल में हुई थी | इस लड़ाई में न केवल कामगारों की जीत हुई , बल्कि देखते - ही देखते यह पूरे देश में मजदूरो की शक्ति बनकर उभरी |
संसार की सबसे पहली हड़ताल आज से लगभग तीन हजार दो सौ वर्ष पूर्व हुई थी | जब विकसित उद्योग अस्तित्व में नही आये थे | यह हड़ताल 1170 ई. पूर्व मिस्र में हुई थी , जहा उस समय रेमसे राजवंश चल रहा था | 1200 से 1085 ई पूर्व रेमसे -- तृतीय से रेमसे - नवम का काल रहा है |
यह देखना रोचक होगा कि उस समय श्रमिक की परिभाषा में कौन - कौन - से कामगार आते थे और उनकी कार्य दशाये , जो हडतालो का मूल कारण होती है , कैसी थी ! श्रमिको के क्रमानुसार फोरमैन, क्लर्क , नक्शानवीस, वास्तुशिल्पी ,पेंटर ,खनक ,राजमिस्त्री और अकुशल मजदुर आते थे |
ये राजा , जमीदारो और पुरोहितो द्वारा महल मंदिर और समाधियो के निर्माण कार्य में लगाये जाते थे | राजा के यहाँ सुनार , सराफ , बुनकर और बढ़ई भी काम करते थे | सेना को रथ , कवच , नाव आदि बनवाने के लिए लुहार , बढ़ई और श्रमिको की आवश्यकता पड़ती थी |
कामगारों की स्थिति किसानो से बेहतर थे | ये किसान भी नील नदी में बाढ़ आ जाने पर , खेतो से पानी निकलने और सूखने तक मजदूरी करते थे | श्रमिको के घर कच्ची ईटो के बने होते थे | '' राजाओं ' की घाटी "" के पास डीईर - एल - मेडीनेह में एक ऐसा गाँव भी था जहा पांच सौ सालो से केवल वे ही श्रमिक और उनके वंशज रहते चले आये थे , जो सिर्फ राजाओं की समाधिया बनाने और उन्हें अलंकृत करने का काम करते थे |
श्रमिको की कार्य दशाये दुष्कर नही थी | काम की पालिया दस - दस दिन की होती थी | छुट्टी देने के नियम उदार थी | बीमारी होने पर ही नही उसके लक्षणों के आधार पर ही छुट्टी मिल जाती थी |
बीमारी की परिभाषा विस्तृत थी | अभिलेखों में एक मामला दर्ज पाया गया है कि एक कामगार को इसलिए छुट्टी दे दी गयी , क्योकि वह बीबी द्वारा पिटाई किये जाने के कारण शरीर दर्द से पीड़ित था |
वेतन का भुगतान वस्तु रूप में होता था | मुद्रा का प्रचलन न होने के कारण वेतन रोटी , बीयर , फलियों , प्याज , सूखे मांस , वसा और नकम के रूप में दिया जाता था | कामगारों की श्रेणियों निर्धारित थी और उसी के अनुसार उन्हें वस्तु या वस्तुए वेतन के रूप में मिलती थी |
लगभग 1170 ई पु में सरकार लगातार दो महीने तक वेतन नही दे पाई | यह वह समय था , जब मिश्र राजवंश का सितारा डूबने लगा था और राजकोष खाली हो चला था | वेतन खाद्य वस्तुओ के रूप में होता था इस कारण श्रमिको द्वारा अधिकतर वस्तुओ का संग्रह नही किया जा सकता था | अत: रोज कुआ खोदकर पानी पीने वाली बात थी | अचानक एक दिन थेबीज में नेक्रोपोलिस के कामगारों ने अपने औजार फेंक दिए और '' हम भूखे है , हम भूखे है '' चिल्लाते हुए काम छोड़कर बाहर निकल आये | वे रेमसे - द्दितीय के समाधि -- मंदिर तक पहुचे और उसकी दीवार के बाहर जूते हुए खेतो की मेड पर बैठ गये |
तीन अधिकारी उन्हें समझाने आये , उन्हें आश्वासन दिए और काम पर लौटने को कहा | पर भूखा पेट कोई उपदेश नही सुनता | अत: वे नही माने | अगले दिन उन्होंने जलूस निकाला | तीसरे दिन श्रमिक फिर हड़ताल पर रहे और जलूस के रूप में मंदिर के अहाते में पहुच गये | वे सयमित थे पर वेतन भुगतान की अपनी मांग पर डटे रहे | एक महीने बाद सरकार के कान पर जू रेगी और श्रमिको को तीस दिन के वेतन के रूप में राशन दिया गया | जिसे लेकर भी उन्होंने हड़ताल नही तोड़ी | उसके बाद आठ दिन हड़ताल और चली | जब उन्हें दूसरे महीने का भी वेतन मिल गया तभी वे काम पर लौटे |
राजकोष की स्थिति खराब होने के कारण कुछ समय बाद फिर वेतन का भुगतान बंद हो गया | फिर हड़ताल हुई , परन्तु इस बार उन्हें कोई भी अधिकारी आश्वासन देने नही आया | अत: श्रमिको को इस आशंका ने ग्रसित कर लिया कि हड़ताल चाहे कितने दिन चले उन्हें वेतन मिलने वाला नही | सरकार की उपेक्षा के कारण हड़ताल से सयम और अनुशासन के तत्व विलीन हो गये | श्रमिक घोर निराशा में डूब गये | अत: अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए वे समाधि स्थलों पर लूटपाट करने लगे और उससे मिली वस्तुओ के बदले अनाज प्राप्त करने लगे | यह कार्य सरकारी अधिकारियों की शह पर होता था , जो लुट में से अपना हिस्सा लेकर इस और से अपनी आँखे मुड़ते रहते थे | इस प्रकार राजा की उपेक्षा के कारण वे असंतुष्ट कामगार लुटेरे तक बन गये |
लेखक - सुधीर निगम साभार - अहा ! जिन्दगी जनवरी 15 अंक से
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