Wednesday, January 28, 2015

तत्वज्ञानी --- 29-1-15

 तत्वज्ञानी ---




सिकन्दर ने सुन रखा था कि भारत विश्व गुरु है वो सुन रखा था की यहाँ पर एक से बढ़कर एक तत्वज्ञानी  मौजूद है  | उसके मन में विचार आया कि ऐसे ही किसी श्रेष्ठ तत्वज्ञानी को उसे अपने देश में लेकर चलना चाहिए | ऐसा सोचने के बाद वह श्रेष्ठ तत्वज्ञानी की तलाश में लग गया | एक दिन उसके सेवको ने आकर बताया कि पास के जंगल में एक  कुटिया में साधू रहता है , जो श्रेष्ठज्ञानी है | यह जानकार सिकन्दर उस जगह पर जा पहुचा  | साधू बेहद सादगी पूर्ण जीवन व्यतीत करता था | किन्तु साधनों का सर्वथा अभाव रहते हुए भी प्रसन्नता और तह्स्विता उसके मुख से स्पष्ट झलक रही थी  | उसे देखकर सिकन्दर को लगा कि यही उस वर्ग का व्यक्ति है , जिसकी उसे तलाश है | सिकन्दर ने साधू को अपने साथ चलने और विपुल ऐश्वर्य भोगने का प्रलोभन दिया | सिकन्दर की बात सुनकर साधू मुस्कुराया और बोला -- इन वस्तुओ की नश्वरता देखकर मैं विवेक पूर्वक बहुत समय पहले ही इन्हें त्याग चुका हूँ | अब इन्हें पाने के लिए प्रकृति का सुरम्य माहौल छोड़कर महलो की कैद में भला क्यों जकडू  ?  साधू का इनकार करना सिकन्दर को अपना अपमान लगा | वह गुस्से से तिलमिला उठा और म्यान से तलवार निकालते हुए साधू से बोला -- तुम्हे मेरे साथ चलना ही होगा | यदि मेरा कहना नही मना तो अभी तुम्हारा सिर धड से अलग कर दूगा | सिकन्दर की यह हरकत देख साधू हँस पडा और बोला -- तुम चाहे कितने ही शक्तिशाली क्यों न हो , लेकिन यह समझ लो कि काल से अधिक बली नही हो | तुम उसके विधान को नही मिटा सकते | यदि मेरा मरना आज ही और तुम्हारी इस तलवार के जरिये ही मरना लिखा है तो उस अमिट को निकट आया देखकर मैं भला डरुंगा क्यों ? बंधन मुक्ति पर प्रसन्न क्यों नही होऊँगा | यह सुनकर सिकन्दर अचंभित रह गया | उसने उस तत्वज्ञानी साधू की मन: स्थिति को लोभ और भय से ऊँचा पाया | वह समझ गया कि साधू को अपने इरादों से डिगाया नही जा सकता  | लिहाजा उसने साधू को अपने साथ ले जाने का विचार छोड़ दिया |

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