Saturday, December 27, 2014

छापेखाने ( प्रेस ) के अविष्कारक ----- विलियम कैक्सटन 28-12-14

जिनके हम ऋणी है --------


छापेखाने ( प्रेस ) के अविष्कारक ----- विलियम कैक्सटन






आज से सात -- आठ सौ वर्ष पहले बहुत कम लोग पढ़े - लिखे होते थे | लोग पढ़ते कैसे ? पुस्तके ही नही थी | थोड़ी -- बहुत पुस्तके जो थी वे बहुत महँगी थी , कयोकि वे हाथ से लिखी जाती थी | एक पुस्तक लिखने में महीनों लगते | फिर यह पुस्तक कोई धनी आदमी खरीद लेता |

प्राचीन काल में कागज और कलम भी नही होते थे | लोग  राजहंस या बत्तख के पखो से कलम बनाते और भेड़ की खाल को साफ कर के उससे  कागज का काम लेते ,  , फिर अपने मनपसन्द रंग से उस पर लिखते | यदि  छापाखाना  ( प्रेस ) का आविष्कार न हुआ होता , तो आज प्रत्येक पुस्तक  दूसरी पुस्तक से भिन्न होती | फिर पुस्तके  इतनी बड़ी संख्या में बाजार में कहा से मिलती ? हम पर यह बड़ा उपकार किसने किया विलियम कैक्सटन ने |


विलियम कैक्सटन इंग्लैण्ड में पैदा हुए थे | उन दिनों में शिक्षा बहुत कम थी | फिर भी विलियम के पिता ने उन्हें घर पर थोड़ा -- बहुत पढ़ा लिखा दिया | विलियम कुछ सयाने हुए तो उनके पिता ने उन्हें लन्दन के एक व्यापारी के पास नौकर रखवा दिया | विलियम के पिता चाहते थे कि उनका बेटा व्यापार करना सीखे | जिस व्यापारी  के पास विलियम काम सिखने गया उनकी कम्पनी में लन्दन के कई अन्य व्यापारी भी शामिल थे | ये व्यापारी रेशम और ऊनि कपड़े खरीदते -- बेचते थे | विलियम थोड़े ही समय में कपड़े के व्यवसाय के गुर जान गये | उन्हें कपड़े की पूरी -- पूरी पहचान हो गयी | कपड़े के रंगों को देखते ही विलियम बता देते थे कि ये रंग कच्चे है या पक्के | कपड़ा अच्छा है या खराब |
उन दिनों लन्दन में व्यापारियों के सभाए भी होती थी | व्यापारी लोग अपने सामान का प्रचार करने के लिए इकठ्ठे होकर बाजारों में घूमते थे | विलियम की कम्पनी भी शहर में जलूस निकालती | उस समय विलियम अपने स्वामियों के पीछे -- पीछे जलूस में शामिल होते | सब व्यापारी गीत  और कविता पढ़ते हुए बाजार से गुजरते | विलियम बीस वर्ष के थे कि कम्पनी का स्वामी मर गया | विलियम को उनकी मौत का बड़ा दुःख हुआ | अब विलियम को घर से दूर वेल्जियम के नगर बुरोजज में भेज दिया गया | वहा  वह एक बड़े मकान में रहने लगे | विलियम  को शायद यह मकान पसंद न आता, लेकिन उस मकान में सभी अंग्रेज रहते थे | विलियम को विदेश में अपने देश के लोग मिल गये तो वह स्वदेश से दूर होने का दुःख भूल गये | वह बहुत जल्दी सब लोगो से घुल - मिल गये | विलियम बहुत ही समझदार थे | प्रत्येक का हमदर्द भी था | इसीलिए उस मकान में रहने वाले अंग्रेज ने उन्हें मकान का मैनेजर बना दिया | अब मकान की देखभाल , लोगो के खाने - पीने और मनोरंजन आदि सब का प्रबंध विलियम के हाथ में था | अंग्रेजो के आपस में झगड़े होते तो विलियम ही उनमे सुलह - सफाई करवाते | उन्हें जब फुर्सत मिलती , तो पुस्तके ढूढने निकलते और घर लाकर रात - रात  भर पढ़ते रहते | विलियम जब वहा  से जर्मनी  गये तो वह वहा  के कई धनी आदमियों से मिले | इन मुलाकातों में विलियम ने इन धनी लोगो के पास पुस्तके देखी  | ये पुस्तके चमड़े पर हाथ से लिखी हुई थी  | लिखने वालो ने बड़े सुन्दर रंग का उपयोग किया था | इन पुस्तको में हाथ से बनी हुई तस्वीरे भी थी | विलियम को फ्रांससी भाषा में लिखी हुई एक पुस्तक मिल गयी | उन्हें यह पुस्तक इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने पुस्तक का अंग्रेजी  में अनुवाद करना आरम्भ कर दिया और अपनी पुस्तक का नाम '' ट्राय का इतिहास '' रख दिया | पुस्तक बहुत बड़ी थी | विलियम ने उसे नकल और अनुवाद करने में दिन - रात एक कर दिए | वह काफी समय तक अनुवाद में लगे रहे | आखिर उनकी नजर कमजोर हो गयी | उनकी आँखों से हर समय पानी बहने लगा | हाथ से बिलकुल  शिथिल हो गये | उन्होंने विवश होकर अनुवाद बंद कर दिया लेकिन उसी दिन से सोचने लगे कि कोई ऐसा तरीका होना चाहिए जिससे पुस्तक आसानी से नकल हो जाए और साथ ही बहुत सी पुस्तके एक साथ तैयार हो जाए | जर्मनी और हालैंड में घूमते हुए विलियम को पता चला कि कई लोग लकड़ी को खोदकर उसमे कुछ अक्षर उभार  लेते है | उभरे हुए अक्षरों पर रंग लगा देते है और फिर कागज चिपका कर उसका प्रतिबिम्ब उतार लेते है | इस प्रकार आक्ग्ज पर उभरे हुए अक्षर नकल हो जाते है | विलियम बुरोजज वापस आये , तो किसी ऐसे आदमी को ढूढने लगे , जो लकड़ी पर अक्षर बनाना जानता हो | उन्हें एक दुकानदार मिल गया | विलियम ने बूढ़े आदमी को समझाया कि भई लकड़ी के अक्षर बनाना ठीक नही है , कयोकि लकड़ी फट जाती है और अक्षर बेकार हो जाते है | विलियम ने उसे सलाह दी कि लकड़ी के बजाए धातु के छोटे - छोटे अक्षर बनाये | फिर एक चौखटा तैयार किया | विलियम उस चौखटे में सभी अक्षर इकठ्ठे करके कस  देते | अक्षर पर स्याही लगाते और कागज चिपका -- चिपकाकर उतर लेते | इस प्रकार शब्द कागज पर बिल्कुल  साफ छप जाते | विलियम ने यह आविष्कार पूरा कर लिया तो अपना छापाखाना ( प्रेस ) लेकर अपने देश वापस आ गये | लन्दन आते ही विलियम ने एक दुकान में छापाखाना लगा दिया दुकान के बाहर छापेखाने का बोर्ड  लगाया | सारे  संसार में यह सबसे पहला छापाखाना था | लोग हैरान थे | लन्दन में रहने वाले भाग  -- भाग कर छपाई का तमाशा देखने के लिए विलियम की दुकान पर आते | विलियम के छापेखाने की हर और धूम मच गयी | यहाँ तक कि इंग्लैण्ड  का सम्राट एडवर्ड चतुर्थ भी यह विचित्र मशीन  को देखने आया | शाही जलूस जब छापेखाने पहुचा तो विलियम और उसके साथी अपने काम  में लगे हुए थे | दुकान में हर और धातु के छोटे - छोटे अक्षरों के ढेर पड़े थे | सम्राट और उसके धनी मंत्रियों ने कागज छपते देखा तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ | विलियम ने अपने छापेखाने में बहुत सी सस्ती पुस्तके छापी | प्राचीन काल में तो पुस्तके महँगी थी और केवल धनी आदमी ही उन्हें खरीद सकते थे | अब पुस्तके सामान्य लोगो के हाथो में भी पहुच गयी | लोग बड़े शौक से पुस्तके पढने और सुनने लगे | विलियम ने कहानियो की बहुत सी पुस्तके वीरो के कारनामे , गिरजे की प्रार्थनाये , प्रवचन छापे | विलियम कहते थे कि विद्या बड़े आदमियों के घर की दासी नही है कि हर समय उन्ही की सेवा करती रहे | विद्या प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य का अधिकार है | विद्या पुस्तको से प्राप्त होती है | इसीलिए पुस्तके अधिक से अधिक और सस्ती छपनी चाहिए |
विलियन अब इस दुनिया में नही है लेकिन उनका कारनामा अब भी जिन्दा है | विलियम के बाद छापेखाने की बड़ी उन्नति हुई | संसार में प्रत्येक नगर में कई - कई छापेखाने खुले | हजारो - लाखो पुस्तके , पत्रिकाए और अख़बार छपने लगे | अज छापेखाने में ऐसी मशीने लगी हुई है जो रातो -- रात हजारो अखबार छापकर तैयार कर देती है | आधुनिक तकनीक के प्रेस समेत पुस्तकीय ज्ञान से आलोकित समस्त विश्व विलियम कैक्सटन का ऋणी है और रहेगा |   


सुनील दत्ता -- स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक --
                                                  -  आभार सुरजीत की पुस्तक '' प्रसिद्द वैज्ञानिक और उनके आविष्कार '' से

3 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (30-12-2014) को "रात बीता हुआ सवेरा है" (चर्चा अंक-1843) "रात बीता हुआ सवेरा है" (चर्चा अंक-1843) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. baabuji aapka aashirwaad milta rahe

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